Saturday, June 30, 2012

इस बार

इस बार जो मिले ज़िन्दगी से,
जाने न देंगे खुद से दूर!
 
अम्मा के पल्लू की तरह जकड के रखेंगे,
अब्बा की ऊँगली के जैसे पकड़ के रखेंगे,
सांस भी लेंगे तो होगा सुरूर,
 
इस बार जो मिले ज़िन्दगी से,
जाने न देंगे खुद से दूर!
 
गाँव के स्कूल की पट्टी और दवात,
बेख़ौफ़, खुले मन से, लिखेंगे हर बात,
मास्टर करे चाहे कितना मजबूर,

इस बार जो मिले ज़िन्दगी से,
जाने न देंगे खुद से दूर!

क्या शिकवा, शिकायत, गिला भूल जायेंगे,
हवा में रहेंगे, आसमान में बिस्तर बिछायेंगे,
मौसम रुख बदले, तूफ़ान पुरजोर,

इस बार जो मिले ज़िन्दगी से,
जाने न देंगे खुद से दूर!

सांस रुकी तो सांस की कीमत आई,
एक सूत ख्वाहिश थी, दो सूत ज़िन्दगी गंवाई,
अब न फिर पालेंगे ऐसा फितूर,

इस बार जो मिले ज़िन्दगी से,
जाने न देंगे खुद से दूर!

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