Thursday, August 18, 2011

. . . . . . . . . . .तुम और तुम्हारी खिलखिलाहट


तुम और तुम्हारी खिलखिलाहट, 
और कुछ खामोश पल, 
जैसे सर्दियों में खिली धूप,
और जगजीत की पुरानी ग़ज़ल,

इन्हीं सर्दियों में हम छज्जे पे खड़े चाय की चुस्कियां ले रहे हों, 
और तुम टीवी पर "छज्जे छज्जे का प्यार" देखो, 
दूर कहीं रेडियो पर "सिलसिले" के गीत चल रहे हों, 
और तुम यूँही मेरी तरफ एक बार देखो,

फिर इसी बीच वो तुम्हारा फिर से  बेवजह खिलखिलाना, 
मेरा अगली चुस्की को रोकते हुए तुम्हें देखना,
कुछ  सोचना,
और कहना,
"कि थोड़ी खिसकी है"

फिर अगली चुस्की के साथ,
वो खिलखिलाहट, वो खामोश पल,
वो खिली धूप, वो पुरानी ग़ज़ल, 
को पी जाना,
और मन ही मन ये सोचना,
"कि ज़िन्दगी हसीन है" 

Wednesday, August 10, 2011

. . . . . . . . . . . . . .पथिक हूँ में, पथिक हूँ में!


पथिक हूँ में, पथिक हूँ में,


मुझे ना चाह मंजिल की,
मुझे ना दूरियों से रोष,
ना कुछ पाने का है उल्लास,
ना कुछ खो जाने का अफसोस,
मेरी बस एक अभिलाषा,
उसी को में समर्पित हूँ,

पथिक हूँ में, पथिक हूँ में!

कभी जो राह में भूलूं,
तो अपना भाग्य में मानूं, 
कहूँ जो भी, करूँ जो भी,
स्वयं का अंश में जानूं,
धरीधर सा हठी में हूँ,
में हूँ निर्भय पवनसुत सा,

पथिक हूँ में, पथिक हूँ में!

हरेक साथी है साधू सा,
हरेक पथ योग सा मुझको,
मुझे बस बहना आता है, 
ठहरना रोग सा मुझको,
में प्रेमी हूँ हरेक पथ का,
हरेक पथ मेरा मुर्शिद है,

पथिक हूँ में, पथिक हूँ में! 

Wednesday, August 3, 2011

. . . . . . . . . . . . . . . . . .सुबह





बेजान ख्यालों के दिन,
अपाहिज सपनों की रात,
कहती है तुमसे कुछ बात!!


कि उठो, जागो,
और हमें भी जगाओ,
ज़िन्दगी अभी जिंदा है,
ये अहसास,
हमें भी कराओ,


हम अपाहिज हैं, तो क्या है?
तुम खुद को पंख लगा के,
हमको भी साथ उडाओ,


ओदे कोयले कि तरह मत सुलगो,
जो बस धुंआ छोड़े, आंसू बहाये,
जलो तो ऐसे जलो,
कि बर्बादी तो हो,
पर अँधेरा मिट जाये,


सुबह से कुछ सीखो,
हरेक रात को वो खुद को भूल जाती है,
हर सुबह, वो फिर से,
एक नयी सुबह बन के आती है,
हर सुबह,
मांगे तुम्हारा साथ,
हर सुबह,
कहती है तुमसे कुछ बात!!