Sunday, April 8, 2012

गोबर

माँ कहती थी, गोबर भी खाद का काम करता है, 
खेतों को उपजाऊ बनाता है, 
बस यही सोच के हम दिमाग को गोबर से भरते गए, 
सोचा की कल उपजाऊ होगा, 
तो हम भी न्यूटन एवं पिकासो की श्रेणी में गिने जायेंगे,
और हमारी बुद्धिमता के चर्चे बौद्धिक गौष्ठियों में किये जायेंगे, 

ये सिलसिला कई साल तक चलता रहा, 
हमें गोबर उपयुक्त मात्रा में हर रोज़ मिलता रहा, 
फिर एक दिन हमारा शहर की तरफ रुख हुआ, 
यहाँ गोबर की अनुलब्धता देख के हमें खासा दुःख हुआ, 
इधर तो गोबर की जगह यूरिया मिलती है,
योग के भोग की ट्वाइस अ वीक क्लास चलती है.
पहले तो हमें यूरिया के अत्यंत विषेले होने का भय हुआ,
फिर हमें अपनी प्राकृतिकता खो जाने का शंशय हुआ.

कुछ दिन तो हम थोड़े परेशान रहे,
यूरिया की कृतिमता से खासे हैरान रहे,
फिर हमने भी थोड़ी नाक भौं सिकोड़ी,
और दिमाग की घोड़ी यूरिया की तरफ मोड़ी,
कुछ दिन मिजाज़ ख़राब रहा, 
कभी खांसी कभी जुलाब रहा, 
लेकिन हम भी कहाँ हार मानने वाले थे,
बड़े होके बड़ा बनने के सपने बचपन से पाले थे,

अंततः दिमाग ने यूरिया के फायदे को भांपा,
और ज़िन्दगी के हर पहलु को हमने  बड़ी कृतिमता से  मापा,
बस आजकल माँ खासी परेशान रहती है,
जब भी बात हो, तो बस एक ही बात कहती है, 
कि बेटा अब तुम बेकार हो गए हो, 
पहले मोतीचूर के लड्डू थे, 
अब मूली के अचार हो गए हो, 

पहले तो हम माँ की डपट चुपचाप सुन लेते थे,
वो कुछ भी बोले, हाँ में हाँ भर देते थे, 
लेकिन एक दिन हमें खुंदक आई, 
शहर कि जगमग चकाचोंध कि कहानी माँ को सुनाई, 
उन्हें यूरिया की बढ़ती डिमांड का चार्ट दिखाया, 
और फॉर अ चेंज उन्हें गोबर की जगह यूरिया का टेस्ट कराया, 

माँ पहले तो झल्लाई, 
कुछ घंटे तक इधर उधर बौरायी, 
फिर कुछ देर बाद उसे भी बात समझ में आई, 
और अपने बेटे की प्रगति पर मन ही मन इतराई, 
इतवार के दिन उसने चबूतरे पर मजमा लगाया,
और यूरिया का  किस्सा हर किसी को सुनाया, 
बताया की हमारा बेटा आगे बढ़ रहा है, 
और इस  ज़ालिम दुनियां से अकेले लढ़ रहा है, 

हम भी हर्षित होके घर से वापस आये, 
और शहर पहुंचते ही ओल्ड मोंक के दो पेग लगाये, 
अब लगता है ज़िन्दगी थोड़ी सरल हो गयी है, 
गोबर की सहज प्राकृतिकता से विरल हो गयी है, 
अब हमसे भी गोबर की निश्छल सडांध की जगह, 
यूरिया की कृतिम महक आती है, 
जो पर्यावरण के लिए भले ही अपकारी हो,
पर यहाँ के बुद्धिजीवियों को खासी भाती है,
हम भी खुश है की अब वो गोबर की सिलसिलाहट नहीं है, 
ज़िन्दगी में बस नमक कम है, बाकी कोई कमी नहीं है. 
बाकी कोई कमी नहीं है. 

1 comment:

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.