Sunday, July 24, 2011

. . . . . . . . . . . . . . . . .कैसी हो तुम!

कैसी हो तुम,
कैसी हो तुम!

अनजान, अनमोल, अनछुई सी,
ओस से भीगी कली सी,
या किसी सौम्य, सहर्ष, सहज, स्वछन्द, मुस्कान सी,
खुद से ही अलग कैसी हो तुम!

मुझको एक इन्सां बनाकर,
स्वच्छ, निश्छल, निष्कपट, निश्वार्थ भावानायेँ, मन में जगाकर,
ईश्वर के नितांत समीप लाकर,
लौट गई, चली गई या मुड़ गई, 
फिर किसी को बनाने एक इन्सान जैसा, 
शायद मुझसे भी अच्छा, और कुछ भगवान जैसा,
जो तुम्हे समझे और समझो उसे तुम,
फिर न हो ये बात, ये अहसास 
के कैसी हो तुम,
आज भी में सोचता हूँ, चाहता हूँ,
के सुनू में, या के पूछूँ, या कहूँ,
कैसी हो तुम, कैसी हो तुम!!

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