बारिश वही है,
मगर कुछ नया है!
ऐसे तो ना दो बूँद गिरने पे,
चिड़ियों से चहचहाते थे हम,
चुपचाप, यूँही, अकेले में,
बेवजह न मुस्कुराते थे हम,
वो नुक्कड़ की चाय में भी,
पहले ऐसी बात न थी,
मिटटी की महक भी,
पहले इतनी खास न थी!
बारिश तो वही है,
मगर कुछ नया है!
मन तो जैसे पानी से,
सूखा ही रहता था,
कुछ खीझा सा रहता था,
रूखा ही रहता था,
पर अब तो लगता है,
मन को किसी ने मदिरा पिला दिया हो,
गीले गर्म गुड़ में,
किसी ने तिल मिला दिया हो!
बारिश वही है,
मगर कुछ नया है!
बारिश वही है,
बस तुम आ गयी हो!!
(Written while it was still raining)
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