सब कुछ यही था,
सब कुछ वही है,
बस तुम कुछ कम हो,
तुम्हारा वजूद कुछ कम है,
अपने वजूद को तराजू में रख कर,
तुमने बेचा कोडियों में,
कुछ हिस्से को काटा,
कुछ को फेका,
कुछ को कुर्बान किया किसी की पोड़ियों में,
और अब के जब तुम कुछ कम हो,
दिखते भी कुछ अलग से हो,
तो अफ़सोस क्यों?
वजूद गर कमीज़ होता,
एक हिस्सा फाड़ के बेचा होता,
रफू कर देते,
वजूद जो मिटटी होता,
कुछ खोद के बेचा होता,
तो फिर भर देते,
पर वजूद तो यकीन था,
गया तो गया,
अब आस लगाये बैठे रहो,
कि कभी कोई बिसराती आये,
और दस गुने भाव पर ही सही,
पर तुम्हारा खोया वजूद,
तुम्हें वापस दे जाये,
तब तक इसी आधे वजूद के सहारे जियो,
जो कुछ यकीन पैमाने में बाकी है,
पानी मिला-मिला के पियो,
बाकी तो येही सब था,
येही सब है,
येही सब रहेगा,
बस तुम कुछ कम होगे,
तुम्हारा वजूद कुछ कम होगा!!
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