Wednesday, June 1, 2011

बस! नहीं कुछ और देर!

बस!
नहीं कुछ और देर!
ख्वाब है, 
अपना ही है,
ऐसे न मरने देंगे!
ठण्ड से बचने को हम,
छप्पर न जलने देंगे!
बस, जरा कुछ और देर!

किसने कहा था चलने को तपती जमीन पर,
अब भुगतो,
छालों की तरफ मत देखो,
कुछ कदम बाकी हैं,
उनको भी चल लो,
बस उस अगले मोड़ तक!
बस जरा कुछ और देर!

सब्र तो करो, 
जगजीत ने कहा था 
"लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है" 
उसे सुनो 
चाहो तो हँस लो,
पर फिर चलो!
बस, जरा कुछ और देर!

कितने मकान खाली थे,
हर तीसरे कदम पे,
लेकिन तुम्हें तो घर चाहिए था,
वो भी जहां दूर तक मकान न हो,
चाह तुम्हारी थी,
विश्वास तुम्हारा था,
अब गिरो, पड़ो, उठो, संभलो,
और फिर चलो!
बस, जरा कुछ और देर!
बस! नहीं कुछ और देर!
बस नहीं!!

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